Wed. Mar 12th, 2025

तमिलनाडु में फिर भड़का हिंदी विरोध: राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर केंद्र और राज्य आमने-सामने


तमिलनाडु में फिर भड़का हिंदी विरोध: राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर केंद्र और राज्य आमनेसामने –

हिंदी विरोध की लहर फिर तेज़

तमिलनाडु में एक बार फिर हिंदी विरोधी भावना उभर रही है। इस बार इसका कारण राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) है, जिसे तमिलनाडु सरकार ने राज्य में लागू करने से इनकार कर दिया है। डीएमके सरकार का कहना है कि यह नीति हिंदी थोपने का प्रयास है। मामला इतना बढ़ गया कि यह संसद तक पहुंच गया, जहां केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बीच तीखी बयानबाज़ी हुई।

तमिलनाडु में हिंदी विरोध का इतिहास

तमिलनाडु में हिंदी विरोध कोई नया नहीं है। यह 1937 से शुरू हुआ था, जब मद्रास प्रेसीडेंसी में राजगोपालाचारी की सरकार ने स्कूलों में हिंदी अनिवार्य करने की घोषणा की थी। इसके खिलाफ पेरियार और जस्टिस पार्टी (जो आगे चलकर डीएमके बनी) ने ज़ोरदार आंदोलन किया।

 

1965: हिंदी विरोध का सबसे उग्र रूप

 

1965 में जब हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने का प्रस्ताव आया, तो तमिलनाडु में ज़बरदस्त विरोध हुआ। इस दौरान हिंसक प्रदर्शन हुए, पुलिस कार्रवाई में कई लोगों की जान गई और कई रेलवे स्टेशनों को आग के हवाले कर दिया गया। इस विरोध को देखते हुए केंद्र सरकार ने हिंदी को अनिवार्य बनाने के फैसले को टाल दिया और अंग्रेज़ी को भी आधिकारिक भाषा के रूप में बनाए रखा।

तमिलनाडु बनाम केंद्र: शिक्षा नीति पर टकराव क्यों?

 

तमिलनाडु सरकार ने NEP को खारिज कर दिया है और अपने दोभाषा (तमिल और अंग्रेज़ी) फॉर्मूले को जारी रखने का फैसला किया है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि अगर तमिलनाडु NEP लागू नहीं करता तो उसे केंद्र सरकार की समग्र शिक्षा योजना के तहत मिलने वाली वित्तीय मदद बंद कर दी जाएगी। इस पर मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इसेब्लैकमेलिंगकरार दिया और प्रधान कोअनुशासन सिखाने की जरूरतबताई।


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By Pranav Gavhale

मेरा नाम प्रणव गव्हाळे है. मे यह न्यूज नेटवर्क वेबसाईट का 50% का partnerships holder हू. मे काही समय से Digital marketing कर रहा हू ओर इसमे मुझे तीन साल का अनुभव है. ओर मे यह वेबसाईट पर ब्लॉग राइटिंग का काम भी करता हू.

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